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लेखनी कहानी -16-Oct-2022 खेल खिलाड़ी का और पैसा अनाड़ी का

बहुत सारी कहावतें हम सुनते रहते हैं । अजी खजाना भरा पड़ा है कहावतों का । खेल और खिलाड़ी पर ही अनेक कहावतें हैं मसलन "खुल्ला खेल फरुखाबादी का" , "खेल खेल में" , "खेल खिलाड़ी का" । "खेल खिलाड़ी का" कहावत में कुछ शब्द और जोड़कर एक कहावत हमने भी लगे हाथ बना दी " खेल खिलाड़ी का और पैसा अनाड़ी का " ।

हम बड़े मगन थे कि कहावत बनाने वालों में हमारा नाम भी शामिल हो गया है और हम हवा में उड़ने लगे । हालांकि ये कहावतें कोई पलक झपकते ही नहीं बन गई थी , बरसों के अनुभव के आधार पर बनी थी पर हमने तो पलक झपकते ही बना दी थी । एक लेखक क्या नहीं कर सकता है ? उसकी ताकत तो उसकी कलम ही है । वह कलम से क्रांति ला सकता है जैसे फ्रांस में क्रांति लेखकों और विचारकों ने ही  पैदा की थी । भारत में आजादी के आंदोलन में भारतेन्दु हरिश्चंद्र, बंकिम चंद्र चटर्जी जैसे सैकड़ों लेखकों का योगदान है लेकिन एक राजनीतिक दल ने सबके योगदान को भुलाकर अपना "पेटेन्ट " करवा लिया आजादी की लड़ाई पर । वह राजनीतिक दल उस आंदोलन को अपनी विरासत के रूप में परोसता रहा है जनता को और जनता बेचारी कुछ समझे बिना उस दल को अब तक सत्ता में बिठाती आ रही है ।

पर इन पत्नियों को ये कहां हजम होता है कि ये पति रूपी पतंग आसमान में ऊंची उड़ान भरे , नाचे , गाये , इतराये । पतियों को ये अधिकार है ही नहीं । उसे तो केवल इशारों पर ही नाचना है क्योंकि चरखी रूपी लगाम तो उनके ही हाथों में रहती है । झट से श्रीमती जी बोली " मजा नहीं आया "

हम भी उनके भाव ताड़ गए और बोले "अजी मजा किसी के बाप का नौकर थोड़े ही है जो जब चाहो तब आ जाये । मजा भी स्वाभिमानी है, उसकी जब मरजी होगी तब आयेगा । फिर भी यह तो बताओ कि कहां मजा नहीं आया " ?
" अजी, कुछ हजम नहीं हो रही है ये कहावत । तुकबंदी कुछ बैठी नहीं है" ।
मैंने कहा "देवी जी ये तुकबंदी है कोई नेता नहीं जो जब चाहे किसी भी दल से निकल कर किसी दूसरे दल में जाकर बैठ जाये । यहां तक कि कल तक जिसे पानी पी पीकर गालियां दे रहा था आज उसी की ही गोद में जाकर बैठ गया ।  ये नई कहावत है कोई राजनीतिक दल का सदस्य नहीं जो अपने मालिक ( नेता ) के कहने से भौंकता है या चुप बैठता है । या मीडिया का कोई न्यूज चैनल नहीं जो अपना एजेंडा चलाने के लिए "फेंक न्यूज" फेंकता रहता है या पैसा लेकर एजेंडा , प्रोपेगेंडाचलाता रहता है । ये बॉलीवुड गैंग का कोई नशेड़ी तथाकथित हीरो नहीं जो अपने मूल चरित्र को छुपाकर "चाकलेटी" हीरो बना रहता है । ये मेरी कहावत है जो केवल मेरे बनाने से बनती है ।  यह किसी के एजेंडे से नहीं चलती है और ना ही किसी के कहने से इस पर कोई असर होता है " ।

" पर इसका मतलब भी तो समझाइये ना हमें । हमें तो कुछ समझ ही नहीं आया कि इसका मतलब क्या है" ?

हमने उन्हें समझाते हुए कहा "तुमने कभी सोचा है कि जो फिल्म तीन सौ करोड़ का व्यवसाय कर रही हो तो ये पैसा कहां से आता है ? ये पैसा आता है आम आदमी से । जनता ने अपने पसीने की कमाई से टिकिट खरीद कर फिल्म को सुपर डुपर बनाया और किसी "हकले" को "किंग" तो किसी "लंबू" को "महानायक" और किसी "मवाली" को "भाईजान" बना दिया । जब इन तथाकथित हीरो, हीरोइन , निर्माता , निर्देशकों की जेब में पैसा जाता है तो उस अकूत पैसे और शोहरत से ये लोग बौरा जाते हैं और अपने आपको भगवान से भी बड़ा समझने लग जाते हैं । फिर ये लोग अपनी फिल्मों में वाहियात, ऊलजलूल और यहां तक कि एक धर्म विशेष के विरोध में बहुत सी बातें दिखाकर समाज को कमजोर करने का प्रयास करते हैं " ।

मैं अपने शब्दों का प्रभाव देखने के लिए थोड़ी देर बीच में रुका पर पत्नी तो पत्नी होती है । आज तक कोई पत्नी अपने पति से प्रभावित हुई है क्या ?  तो श्रीमती जी इस परंपरा को कैसे तोड़ देतीं ? आखिर हमारी बहुत सी परंपराओं की ध्वज वाहक ये पत्नियां ही तो हैं , अन्यथा ये परंपराएं तो न जाने कब की समाप्त हो जातीं" ।

वे मेरी बातों से प्रभावित हुए बिना कहने लगीं " आप गोल गोल घुमाने में बहुत माहिर हैं । आपके बहकावे में आकर ही तो मैं फंस गई और आपसे शादी कर ली । मगर मैं अब नहीं फसूंगी । इसलिए लच्छेदार बातें मत बनाओ और सीधे सीधे कहो कि इसका क्या मतलब है" ?

मैंने मन ही मन सोचा कि जब मैं इनकी झूठी तारीफों के पुल बांधता था तो ये कितनी खुश होतीं थीं । चांद सितारे तोड़ कर लाने की बात करता था तो ये मुझे "शक्तिमान" या "स्पाइडर-मैन" समझती थी । जबकि इनको भी पता था कि मैं इनमें से कुछ नहीं था लेकिन तब तो वो सब काल्पनिक बातें भी बड़ी अच्छी लगती थीं इन्हें । वो भी ये जानते हुएकि वे सब बातें महज काल्पनिक हैं जिनका हकीकत से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है । मगर आज जब मैं हकीकत बता रहा हूं तो इन्हें समझ नहीं आ रही है । और सबसे बड़ी बात यह है  कि फंसी वो नहीं थी , मैं था । पर ये बात कहने के लिए बहुत बड़ा "जिगर" चाहिए होता है और बेचारे पतियों के पास जो दिल होता है वह एक चूहे का होता है । पर,अब क्या हो सकता है" ?

उसे राजी रखने की गरज से मैं बोला " देखो, खिलाड़ी वो होता है जो अपना खेल खुलकर खेलता है जैसे महेंद्रसिंहधोनी । अपना एजेंडा खुलकर चलाता है जैसे गंदीटीवी । जनता को खुलकर मूर्ख बनाता है जैसे "सर जी" । खुलकर माल कमाता है और मौज उड़ाता है जैसे नौकरशाह" ।

"अब "खिलाड़ी कुमार" को ही देख लो । राष्ट्र वादी की कैसी छवि बनाई थी उसने ? जब सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु हुई थी तो लगभग तीन महीने तक मुंह में दही जमाकर बैठा रहा वह लेकिन जैसे ही उसकी एक मूवी "लक्ष्मी बम" आने को हुई एक वीडियो में हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाता हुआ नजर आया " कैसे कह दूं कि बॉलीवुड में ड्रग्स नहीं है " । ये लोग कलाकार ऐसे ही नहीं बन जाते हैं बहुत मक्कारी करनी पड़ती है कलाकार बनने के लिए" ।

"जब एक चैनल ने इन नशेड़ी लोगों की पोल खोलनी शुरू कर दी तो इन सब गिद्धों ने उस चैनल पर मिलकर मुकदमा ही ठोक दिया । जब ये लोग "उड़ता पंजाब" मूवी बनाकर पूरे पंजाब और पंजाबियों का मजाक उड़ाते हैं तब तो इनकी अभिव्यक्ति की आजादी है । अपनी फिल्मों में एक ठाकुर को गुंडा , डकैत , अपराधी दिखाकर पूरी राजपूत कौम को गाली देते हैं । एक ब्राहण को भगवा कपड़े पहना कर उसे लंपट , धूर्त , षड्यंत्रकारी दिखाकर पूरे ब्राहण समुदाय का अपमान करते हैं । एक बनिया को अत्याचारी , लुटेरा, सूदखोर और न जाने क्या क्या दिखाकर उसका मखौल उड़ाते हैं तब तो ठीक है लेकिन जैसे ही इन दुष्टों का कच्चा चिट्ठा खुलने लगा , ये सारे "भांड" तिलमिला गए । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अनुराग कश्यप, अनुभव सिन्हा, जावेद अख्तर, फरहान अख्तर, शबाना आजमी, स्वरा भास्कर, तापसी पन्नू , करीना खान , सोनम कपूर और बहुत से ढोंगियों ने देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री को कितने अपशब्द कहे । तब तो इनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी । लेकिन अब बॉलीवुड को केवल नशेड़ी , गंजेडी कहने से ही ये बुरी तरह से चिढ़ गए ? इसे ही दोगलापन कहते हैं  । ये तो पूरे "खिलाड़ी" निकले जो अपशब्द भी कह गए और पैसा भी कमा कर ले गए" ।

"जनता अनाड़ी निकली जो पैसे देकर इनकी वाहियात फिल्में देखकर तालियां बजाती रहीं । इनको सुपर स्टार बनाती रही , अरबपति बनाती रही और अब ये लोग उसी जनता की आवाज को दबाने के लिए उच्च न्यायालय का सहारा ले रहे हैं । मगर अब जनता भी जागरूक हो गई है । "सड़क 2" का क्या हाल हुआ है , सबको पता है । "खाली पीली" भी खाली डिब्बा ही साबित हुई । और तो और महान देशभक्त "खिलाड़ी कुमार" की फिल्म "लक्ष्मी बम" भी बम की तरह नहीं फटी बल्कि फुस्स होकर रह गई । अब तो " महानायक " का शो भी बुरी तरह पिट रहा है "बिग बॉस भाईजान" के शो को देखने वाला कोई नहीं है । " लाल सिंह चड्ढा " की "चड्ढी" भी उतर गई है । और तो और अब तो "ब्रह्मास्त्र" भी "फेल" हो गया है ।  बस देखती जाओ तुम । जितना मूर्ख बनाना था , बना लिया जनता को । अब जनता इनको मूर्ख बना रही है और भविष्य में भी बनायेगी । अपना खेल बहुत खेल चुके ये खिलाड़ी लोग ।  अब "अनाड़ी जनता" अपना खेल दिखा रही है । बस देखती जाओ और पैसे लेकर जोर से ठहाके लगाने वाले सिद्धू और अर्चना पूरन सिंह की तरह ठहाके लगाते जाओ "

मेरी बातों से श्रीमती जी बहुत प्रभावित हुईं और कहने लगीं "वाकई आप कमाल हैं, बेमिसाल हैं"। एक गीत का मुखड़ा गाते हुए वे बोलीं
इन्हीं अदाओं पर तो हाय , अपना दिल आया है
इसीलिए हमने साजन , तुम्हें दिल में बिठाया है

आज श्रीमती जी ने प्रशंसा करके बता दिया कि सूरज भी पश्चिम से निकल सकता है बशर्ते प्रयास किया जाये ।

श्री हरि


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3 Comments

Khan

17-Oct-2022 12:36 AM

Bahut sundar rachna likha aapne 🌺💐👍

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Raziya bano

16-Oct-2022 07:14 PM

बहुत खूब

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Reena yadav

16-Oct-2022 04:12 PM

👍👍🌺

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